सहारा न्यूज टुडे/दुर्गेश कुमार तिवारी
देवनागरी लिपि के व महत्वपूर्ण पाण्डुलिपियों के बारे में मिली जानकारी
कानपुर। छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ फाईन आर्ट्स में आयोजित तीन दिवसीय कैलीग्राफी कार्यशाला के अंतिम दिन गुरूवार को विषय विशेषज्ञ कैलीग्राफर श्री विजय कुमार वर्मा ने विद्यार्थियों को कैलीग्राफी की बारीकियों को सिखाया। उन्होंने कैलीग्राफी निर्माण की प्रक्रिया को समझाते हुये सुलेख निर्माण के महत्वपूर्ण बिंदुओं को बताया। इस दौरान विद्यार्थियों ने सुलेखन के सौन्दर्य पक्ष के साथ उसके इतिहास के बारे में भी जाना कि कैसे लिपियों की शुरूआत हुयी और आगे चलकर इसका विकास कैसे हुआ। देवनागरी लिपि के साथ महत्वपूर्ण पाण्डुलिपियों व उनकी उपलिपियों गुजराती, गुरूमुखी (पंजाबी), पाली का निर्माण कैसे हुआ इसके बारे में भी विशेषज्ञ के विस्तार से चर्चा की।
साथ ही उन्होंने विद्यार्थियों को बताया कि शुरुआत में देवनागरी लेखन में बरु की लकड़ी का कलम प्रयोग में लाया जाता है, जो असम में पाया जाता है। इसमें हस्त निर्मित जूट के सतह का प्रयोग किया जाता है, जिस पर प्राकृतिक स्याही से लेखन कार्य किया जाता है, जो कि कई शताब्दियों तक सुरक्षित रहता है। इसमें सोने व चांदी के वर्क से स्याही का निर्माण किया जाता है, इसका प्रचलन वर्तमान में काफी बढ़ रहा है। लेखन कला का प्रयोग महंगी पेंटिंग्स, लोगो डिज़ाईन, टैक्सटाईल डिज़ाईन, कम्प्यूटर आर्ट, पोस्टर्स निर्माण, ग्राफिक डिज़ाईन एवं फैशन डिज़ाईन इत्यादि में किया जा रहा है। युवा पीढ़ी से आकर्षक कैरियर के रूप में अपना रहे हैं। श्री विजय कुमार वर्मा पिछले 35 वर्षो से कैलीग्राफी की पारम्परिक एवं आधुनिक पद्धतियों पर कार्य कर रहे हैं। भारत के लगभग 13 राज्यों में लेखन कला के माध्यम से लोगों को प्रशिक्षित कर चुके।
कार्यशाला में विभाग प्रभारी राजकुमार सिंह ने विद्यार्थियों द्वारा निर्मित सुलेखन को देखा और उनकी सराहना भी की। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के प्रति-कुलपति प्रो0 सुधीर कुमार अवस्थी ने कहा कि इस प्रकार की कार्यशालाओं से विद्यार्थी कला की अन्य विधाओं से भी परिचित होते हैं। इस कार्यशाला में डाॅ0 मिठाई लाल, डॉ0 बृजेश स्वरूप कटियार, तनिषा वधावन, शोभित कुमार गंगवार, जे.बी.यादव आदि उपस्थित रहे।