सहारा न्यूज टुडे संम्पादक दुर्गेश कुमार तिवारी
कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के कुलपति डॉक्टर आनंद कुमार सिंह के निर्देश के क्रम में आज कृषि विज्ञान केंद्र दलीपनगर के पशुपालन वैज्ञानिक डॉक्टर शशिकांत ने बताया कि गर्मी के मौसम में पशुओं के लिए हरा चारा नितांत आवश्यक है। इस तपती गर्मी में इस समय हरे चारे के रूप में ज्वार एवं बाजरे की फसल मौजूद है। जिसमें हाइड्रोसयनिक नामक अम्ल होता है जो पशु को नुकसान करता है इस अम्ल का निर्माण हरे चारे में मौजूद साइनोजेनिक ग्लूकोसाइड के कारण होता है, इन ग्लूकोसाइड पर चारे अथवा रूमेन में मौजूद एंजाइम की क्रिया से हाइड्रोसायानिक अमल बनता है जो जहर होता है। साइनाइड विषाक्त में ऑक्सीजन के वाहक एंजाइम प्रभावित होने के कारण शरीर के ऊतकों में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है जिससे दम घुटने से पशु की मृत्यु हो जाती है। ऐसे कई पौधे/ चारे हैं जिनके सेवन से साइनाइड विषाक्त हो सकती है, किंतु इसमें साइनाइड की मात्रा 500 पी पी एम हरे चारे में एवं 200 पी पी एम सूखे चेहरे में सुरक्षित रहता है, परंतु यह मात्रा जब हरे चारे में 600 पी पी एम से ज्यादा हो जाता है तो पशु के लिए खतरनाक साबित होता है। साइनाइड की मात्रा विभिन्न मौसमों में एवं पौधों के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न होती हैl मुख्यतः ज्वार, बाजरा चारी आदि चारों में कभी-कभी कुछ विशेष परिस्थितियों में साइनोजेनिक ग्लूकोसाइड की अधिक मात्रा होने के कारण इनके सेवन में पशुओं की मृत्यु हो जाती है। डॉ0 शशिकांत ने बताया कि चारे में विष की मात्रा उसकी अवस्था, मृदा में नाइट्रोजन की उपस्थिति, किसान द्वारा बुवाई के समय चारे की वृद्धि के लिए दी गई यूरिया या अन्य खाद एवं पानी की कमी आदि कारकों पर निर्भर करती है। विशेष रूप से पानी की कमी के कारण जिन पौधों की वृद्धि रुक गई हो, पत्तियां सूख कर मुरझा गई हो वह पीली पड़ गई हो, ऐसे चारे में साइनाइड की मात्रा बढ़ जाती है। डॉक्टर कांत ने कहा हरे चारे के अभाव में भूखे पशु यह चारा देखते ही लालच बस इसे खा लेते हैं जानकारी के अभाव में पशुपालक भी मुरझाई हुई एवं अविकसित ज्वार, बाजरा एवं चरी को हरे चारे के अभाव में देने लगते हैं। इसके कारण पशु की मृत्यु हो जाती है।
लक्षण
साइनाइड युक्त चारे के अचानक अधिक सेवन के 10 से 15 मिनट बाद ही पशु में विषाक्त के कारण प्रकट होने लगते हैं।
(1) पशु बेचैन होने लगता है।
(2) उसके मुंह से लार गिरने लगती है।
(3) सांस लेने में कठिनाई होने लगती है तथा पशु मुंह खोलकर सांस लेता है।
(4) मांसपेशियों में ऐंठन व दर्द होने लगता है ,अत्यंत कमजोरी की वजह से पशु लड़खड़ाकर जमीन पर गिर जाता है।
(5) पशु अपने सर को पेट की ओर घूमांकर रखता है।
(6) मुंह से कड़वे बादाम जैसी गंध आती है।
(7) रक्त का रंग चमकीली लाल हो जाता है।
(8) मृत्यु के समय दम घुटने जैसी कराह एवं पीड़ा होती है।
उपचार
(1) साइनाइड विषाक्तता के लक्षण प्रकट होते ही पशु को सोडियम नाइट्राइट 3 ग्राम एवं सोडियम थायोसल्फेट 15 ग्राम 200 मिलीलीटर पानी में घोलकर नसों द्वारा चिकित्सा से परामर्श के बाद देना चाहिए।
(2) सोडियम थायोसल्फेट 30 से 60 ग्राम मुंह से देना चाहिए।
(3) साइनाइड ग्रस्त पशु को ज्यादा पानी पिलाना चाहिए।
(4) चरागाहों में चरने के लिए ले गए पशुओं को कम बढ़ी हुई ज्वार व चरी की फसल नहीं खाने दें।
(5) अच्छी सिंचाई की गई ज्वार वह चारी ही पशुओं को हरे चारे के रूप में दें दो से चार बार बारिश होने के बाद बड़ी फसल ही पशुओं को खिलाएं।
(6) साइनाइड ग्रस्त चारे को हे के रूप में संरक्षित कर सकते हैं।
(7) साइनाइड ग्रस्त चारे को कुछ समय तक सुखाने के बाद उसमें शीरा मिलकर साइलेज के रूप में खिलाने से भी विष का प्रभाव कम हो जाता है।
(8) छोटे मुरझाए हुए पीले वह सुख कर ऐंठे हुए पौधे को चारे के रूप में उपयोग नहीं करें।