सहारा न्यूज टुडे/संम्पादक दुर्गेश कुमार तिवारी
कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के अधीन संचालित कृषि विज्ञान केंद्र दिलीप नगर की गृह वैज्ञानिक डॉक्टर निमिषा अवस्थी में बताया कि जैसे-जैसे मौसम में तपिश बढ़ती जाती है, हमारे लिए जरूरी है कि हम अपने स्वास्थ्य का ध्यान का, अपनी लाइफस्टाइल और खानपान का पूरा ध्यन रखें ताकि शरीर में पानी की कमी न हो, जिससे तबियत खराब न हो। इसी तरह, नाए जन्मे शिशु को भी स्पेशल केयर की जरूरत होती है। दरअसल नए जन्मे शिशुओं के लिए बाहरी वातावरण और मौसम बिल्कुल नया होता है। उन्हें बाहरी चीजों के साथ तालमेल बैठाने में मुश्किलें आ सकती हैं। ऐसे में अगर गर्मी में उनकी अच्छी तरह देखभाल न की जाए, तो उनकी भी तबियत बिगड़ सकती है। इसलिए कुछ बातों का खयाल रखना जरूरी होता है। आमतौर पर नवजात शिशुओं को गुनगुने पानी से नहलाया जाता है, क्योंकि उनका शरीर ठंडा पानी सहने के योग्य नहीं होता है। इसके अलावा, शिशुओं को रोजाना नहलाने के बजाय बॉडी स्पंज भी किया जाता है। वैसे, बच्चे को रोजाना भी नहलाया जा सकता है। लेकिन, उसे लंबे समय के लिए पानी में न रखें। ऐसा करने से उसकी तबियत बिगड़ सकती है। आपको चाहिए कि गर्मी में उसे रोजाना कम पानी में नहलाएं।
शिशु को ना हो पानी की कमी
आमतौर छोटे बच्चों को 6 माह तक पानी नहीं दिया जाना चाहिए और 6 माह के बाद उसे ओआरएस का घोल पिला सकते हैं। अगर नवजात शिशु पूरी तरह से अपनी मां पर निर्भर होता है, तो ऐसे में मां को चाहिए कि वह समय-समय पर अपने शिशु को स्तनपान कराती रहें, ताकि उसके शरीर में पानी की कमी न हो। अगर आपका बच्चा 6 माह से बड़ा है और आप उसे बाहरी आहार देती हैं, तो उसे ओआरएस का घोल पिलाएं। साथ ही ये भी नोटिस करें कि वह एक दिन में कितनी बार पेशाब करता है। अगर वह 7-8 बार 24 घंटे के अंदर पेशाब करता है, तो इसका मतलब है कि बच्चे को डीहाइड्रेशन नहीं है। डीहाइड्रेशन होने पर बच्चा पेशाब कम करता है। इसके अलावा, बच्चे को हाइड्रेट रखने के लिए रूम का टेम्प्रेचर भी सही होना चाहिए। कमरे का तापमान 26-28 डिग्री तक रखने की कोशिश करें।
दोपहर में घर से बाहर न निकलें
जरूरत न होने पर दोपहर के समय नवजात शिशु को लेकर घर से बाहर न निकलें। बाहर की धूप और गर्मी की तपिश न तो शिशु के स्वास्थ्य के लिए सही है और न ही उसकी स्किन के लिए। कई बार ऐसा होता है कि नवजात शिशु को दोपहर में बाहर ले जाया जाए, तो उनकी स्किन झुलस जाती है और शरीर में लाल-लाल चकत्ते हो जाते हैं। कुछ बच्चों को धूप की वजह से रैशेज (त्वचा में लालपन के साथ दाने) की समस्या भी होने लगती है। इसलिए, आप कोशिश करें कि बच्चे को लेकर इस समय बाहर न निकलें। सूती के कपड़े पहनाएं । गर्मी के दिनों में शिशु को सूती के कपड़े पहनाना बहुत जरूरी होती है। इन दिनों आप उसे किसी ऐसे फैब्रिक के कपड़े न पहनाएं, जिससे उसकी स्किन में प्रॉब्लम हो और वह असहज रहे। ध्यान रखें, नवजात शिशु के लिए सही फैब्रिक चुनना बहुत जरूरी है ताकि गर्मी सहन करने में उसे असुविधा न हो। इसके अलावा, अगर उसे पसीना आए, तो सूती के कपड़ा पसीना सोख ले। इससे उसे गर्मी कम लगेगी और गर्मी से होने वाली समस्याएं भी कम होंगी।
डायपर कम पहनाएं
नवजात शिशु के लिए इन दिनों ज्यादातर माताएँ डायपर्स का इस्तेमाल करती हैं। हालांकि, डायपर की वजह से महिलाओं को काफी राहत हो जाती है और बच्चे का कपड़ा भी बार-बार गीला नहीं होता है। लेकिन, ध्यान रखें कि गर्मी के सीजन में बच्चे को लंबे समय के लिए डायपर पहनाने से त्वचा में रैशेज हो सकते हैं, पसीना आ सकता है और अन्य समस्याएं हो सकती हैं। अक्सर ऐसे समस्याओं से बचने के लिए माएं पाउडर का इस्तेमाल करती हैं। इससे बच्चे को दिक्कत हो सकती है। अगर उसे डायपर की वजह से पसीना आ रहा हो, तो उसकी स्किन को हाथ से थपथपाते हुए पोंछ दें। आपके नए जन्मे शिशु के साथ डायपर की कारण कोई समस्या न हो, इसके लिए आप उसे सिर्फ रात को सोते समय डायपर भले ही पहनाए लेकिन दिन के समय डायपर ना पहनायें।
मच्छरों से सुरक्षा : गर्मियों के दौरान
मच्छर ज्यादा होते हैं, जिस कारण डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों की आशंका बनी रहती है। इन सभी से बचने के लिए बच्चों को मच्छरों से बचाना भी जरूरी है। इसके लिए मच्छरदानी का प्रयोग करना सबसे बेहतर विकल्प है। घर से बाहर जाते समय मच्छररोधी लोशन जरूर लगाएं। गर्मीं के दौरान अक्सर बच्चों की त्वचा पर छोटे-छोटे दाने दिखाई देने लगते हैं। इन्हें आम भाषा में घमौरिया कहते हैं। अधिक पसीने के कारण इस तरह की समस्या पैदा होती है। इसमें जलन और खुजली हो सकती, जिससे बच्चे परेशान रहते हैं। घमौरिया से आराम पाने के लिए सूती कपड़ों का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए कुछ घरेलू उपचार किए जा सकते हैं, जैसे ओटमील स्नान, एलोवेरा जेल की कोमल मालिश, बेकिंग सोडा, चंदन पाउडर या मुल्तानी मिट्टी का लेप। नीम के पत्तों को पानी में उबालकर इसके पानी से बच्चों को नहलाना भी घमौरियों से राहत दे सकता है। स्थिति अगर गंभीर हो, तो बच्चे को डॉक्टर को दिखाना जरूरी हैं, क्योंकि इससे बच्चे को असुविधा महसूस हो सकती है।